नहीं तोड़ पाये इस शिवलिंग को औरंगजेब के सैनिक, नागों से डरकर भाग गए थे

किले पर स्थापित भव्य शिव मंदिर में तोमर राजवंश के राजा आराधना करते थे। 17 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ा था, इस दौरान मंदिर में स्थापित शिवलिंग के चारों ओर नागों ने घेरा डाल दिया। नतीजतन औरंगजेब के सैनिकों ने घबरा कर शिवलिंग को तोड़ा नहीं। 

शिवलिंग सहित मलबे को दुर्ग से नीचे फेंक दिया। मलबे में शिवलिंग कई सालों तक दबा रहा। बाद में सिंधिया राजवंश ने इस शिवलिंग को किले की तलहटी में बनवाए कोटेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया।

17 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने ग्वालियर के दुर्ग पर कब्जा कर लिया और उसे जेल में तब्दील कर दिया। दुर्ग पर तोमर राजाओं का बनवाया एक भव्य शिव मंदिर था, जिसमें तोमर राजवंश के शासक आराधना करते रहे थे। औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ दिया, मंदिर में स्थापित मूर्तियों की तोड़फोड़ कर दी, लेकिन उसके सैनिक जैसे ही गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग तक पहुंचे, 

अचानक कहीं से कोबरा नागों का समूह आया और शिवलिंग को घेर का बैठ गया। औरंगजेब के सैनिक इतने सारे कोबरा नागों को देख कर घबराए और भाग खड़े हुए और बाहर से मंदिर को ही ढहा कर चले गए। सैनिकों के जाते ही नाग वहां से चले गए। मंदिर का मलबा बाद में किले से नीचे गिरा दिया गया, शिवलिंग भी उसी में दब गया।

यह शिवलिंग दुर्ग की तलहटी में 150 सालों तक झाड़ियों में पड़ा रहा। बाद में सिंधिया शासक जयाजी राव सिंधिया को इस शिवलिंग की जानकारी मिली तो उन्होंने उसे खोजकर निकाला, और दुर्ग के पास ही एक मंदिर का निर्माण करवाया। जयाजी राव सिंधिया के सैन्य अफसर खांड़ेराव हरी ने यहां बनी बावड़ी के किनारे मंदिर बनवाया और इस शिवलिंग को स्थापित किया गया। 

मंदिर की दीवारों व छत पर शिव की महिमा बताते हुए कई चित्र बनाए गए हैं। ये चित्र आज भी जीवंत बने हुए हैं और भगवान शिव की गाथा का वर्णन करते हैं। इस मंदिर का नाम कोटेश्वर महादेव इसलिए पड़ा, क्योंकि दुर्ग के परकोटे से ये प्रकट हुए हैं।